Fit 40 થી 50 ડિગ્રી સેલ્સિયસ વચ્ચે આગામી ગરમીના મોજા માટે તૈયાર રહો.

Fit 40 થી 50 ડિગ્રી સેલ્સિયસ વચ્ચે આગામી ગરમીના મોજા માટે તૈયાર રહો.  હંમેશા ઓરડાના તાપમાને પાણી ધીમે ધીમે પીવો.  ઠંડું કે બરફનું પાણી પીવાનું ટાળો!  હાલમાં, મલેશિયા, ઇન્ડોનેશિયા, સિંગાપોર અને અન્ય દેશો "ગરમીની લહેર" અનુભવી રહ્યા છે.  આ શું કરવું અને ન કરવું:    1. *ડોક્ટરો સલાહ આપે છે કે જ્યારે તાપમાન 40 ડિગ્રી સેલ્સિયસ સુધી પહોંચે ત્યારે ખૂબ ઠંડુ પાણી ન પીવો, કારણ કે આપણી નાની રક્તવાહિનીઓ ફાટી શકે છે.*  એવું નોંધવામાં આવ્યું કે એક ડૉક્ટરનો મિત્ર ખૂબ જ ગરમ દિવસથી ઘરે આવ્યો - તેને ખૂબ પરસેવો થઈ રહ્યો હતો અને તે ઝડપથી પોતાને ઠંડુ કરવા માંગતો હતો - તેણે તરત જ ઠંડા પાણીથી તેના પગ ધોયા... અચાનક, તે ભાંગી પડ્યો અને તેને હોસ્પિટલમાં લઈ જવામાં આવ્યો.    2. જ્યારે બહાર ગરમી 38 ° સે સુધી પહોંચે અને જ્યારે તમે ઘરે આવો, ત્યારે ઠંડુ પાણી ન પીવો - ધીમે ધીમે માત્ર ગરમ પાણી પીવો.  જો તમારા હાથ કે પગ તડકામાં હોય તો તરત જ ધોશો નહીં. ધોવા અથવા સ્નાન કરતા પહેલા ઓછામાં ઓછા અડધો કલાક રાહ જુઓ.    3. કોઈ વ્યક્તિ ગરમીથી ઠંડક મેળવવા માંગતો હતો અને તરત જ સ્નાન કર્યું. સ્નાન કર્યા પછી, વ્યક્તિને સખત

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक रहस्य

*शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक रहस्य*

Scientific Reason of Sharad Purnima 🌕🌖🌔🌓🌒🌙

*प्रतिपदा दूज, एकादशी पूर्णिमा, टैसू पूनो, कोजागिरी, कौमुदी वृत, लक्ष्मी पूजा, महारास पूर्णिमा इत्यादि रूपों में मनाया जाने वाला शरद पूर्णिमा का पर्व शरद ऋतु का प्रवेश द्वार है।*

*लाखों वर्ष पूर्व समुद्र मंथन पर शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ उनके जन्म को शरद पूर्णिमा उत्सव के रूप में भारत में सर्वप्रथम बंगाल में मनाने का प्रचलन हुआ। कालांतर में त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि के अवतरण और वर्तमान में कृष्ण भक्ति में पगी मीराबाई के जन्म का दिन भी यही है*

*शरद पूर्णिमा और चंद्रमा*

*अतिपुरातन काल से ही शरद पूर्णिमा को भारत भर में भिन्न भिन्न तरह से मनाते आ रहे हैं भारतीय संस्कृति में चंद्रमा व्यक्ति के जीवन को कैसे और कितना प्रभावित करता है इसका अनुसंधान विवेचन और विश्लेषण किया गया। ऋषियों की खोज चंद्रमा के रहस्य को जानने में केन्द्रित रही है। उन्होंने उसके निर्माण से अब तक सभी खगोलीय घटनाओं का पृथ्वी पर घटित उसके प्रभाव का सूक्ष्म अध्ययन और अनुसंधान किया। उससे प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर उन्होंने उसे समाजोपयोगी बनाया। उसी कड़ी में ही शरद पूर्णिमा पर्व भी है जिसमें एक सामान्य व्यक्ति भी बिना विज्ञान जाने शारीरिक और मानसिक लाभ ले सकता है।* 


*व्यक्ति पर चंद्रमा का प्रभाव*

*लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी का उपगृह चंद्रमा टूट कर पृथक हुआ। जो पृथ्वी के सबसे नजदीक 4,06,696 किलोमीटर पर है। चूंकि चंद्रमा की गति धीमी है इसलिए सूर्य से उसका एक हिस्सा ही प्रभावित होता है जिस कारण उसका अधिकतम 59 % हिस्सा ही हमें दृष्टिगोचर होता है। वस्तुतः सूर्य की किरणें चंद्रमा की जितनी सतह से परावर्तित होकर पृथ्वी तक आती हैं हमें चंद्रमा उतना ही प्रकाशित दिखाई देता है। चंद्रमा के प्रकाश की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सैकेंड होने से चंद्रमा की किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने में 1.3 सैकेंड लगते हैं। सूर्य का परिभ्रमण 12 राशियों में होता है सूर्य हर राशि में एक माह रहता है जिससे 12 महीनों का निर्धारण हुआ। जबकि चंद्रमा के गोचर की गति धीमी होती है अतः वह 54 घन्टें (सवा दो दिन) ही एक राशि में रह पाता है जिससे रात में 15 दिन उजाला और 15 दिन अंधकार रहता है। ये दोनों पक्ष ही पूर्णिमा और अमावस्या हैं। वस्तुतः चंद्रमा जिस राशि में होता है उस समय जन्म लेने वाले जातक की भी वही राशि हो जाती है इस आधार पर चंद्रमा व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करता है*

*चंद्रमा का व्यास 3476 किलोमीटर है एवं सूर्य से 15.5 करोड़ किलोमीटर दूर है इस कारण चंद्रमा पर तापमान दिन में 123° सैल्सियस और रात में -183° सैल्सियस होता है। चूंकि चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल 1/6 होता है इसलिए यदि पृथ्वी पर हमारा भार 60 किलो है तो चंद्रमा पर 10 किलो रहेगा। यदि पृथ्वी पर 1 मीटर की उछाल होती है तो चंद्रमा पर 6.5 मीटर उछाल होगी*

*शरद पूर्णिमा और ज्वार भाटा*

*वेदों में चंद्रमा के संबंध में विस्तार से विवरण दिया गया है। लाखों वर्ष पूर्व ऋषियों ने चंद्रमा के प्रतिगुरुत्वाकर्षण बल के कारण पूर्णिमा को समुद्र की लहरों को आकाश की ओर ऊपर उठते देखा (ज्वार), और अमावस्या को नीचे बैठते देखा (भाटा)। उन्होंने चिंतन किया कि जब चंद्रमा विशाल समुद्र के अथाह जल को ऊपर खींच सकता है तो हमारे शरीर के जल को भी खींचता होगा उन्होंने अनुभव और अध्धयन से जाना कि हमरे शरीर में भी 70 % जल है अतः पूर्णिमा पर उसका भी वैसा ही प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है।*

*शरद पूर्णिमा-आयुर्विज्ञान और पराविज्ञान का समन्वय है*

ऋषियों ने अध्ययन से पाया कि *सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण* के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। शरद पूर्णिमा पर *औषधियों की स्पंदन क्षमता* अधिक होती है। *रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की आवृत्ति उत्पन्न होती है।* 

विभिन्न प्राचीन भारतीय आयुर्विज्ञान ग्रंथों और साहित्य में चंद्रमा को *औषधीश* या औषधियों का स्वामी कहा गया है। *कालिदास* ने चंद्रमा को ‘ *पतिरोषधीनाम्* ’ कहा है अर्थात जो औषधियों का पति यानी स्वामी है। पुराणों में स्पष्ट रूप से वर्णन आता है कि चंद्रमा से जो *अमृतयुक्त तेज* पृथ्वी पर *ज्योत्सना के माध्यम से* गिरता है उसी से औषधियां जन्म लेती हैं। यही कारण है कि आयुर्वेदाचार्य पूरे वर्ष *शरद पूर्णिमा की प्रतीक्षा* करते हैं और इस विशेष रात्रि में अपनी समस्त *जड़ी-बूटियों* को उस अमृत चांदनी में पहले से अधिक *शक्ति संपन्न और प्रभावशाली* बनाने हेतु छोड़ देते हैं। इसका तत्वदर्शन आधार यह है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है। *अंतरिक्ष में विद्यमान समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्र किरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं जो मानव शरीर और मस्तिष्क हेतु सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाली और मानव शरीर के ऊर्जा चक्रों को अपार ऊर्जस्वित बनाने वाली होती हैं।* चंद्र ज्योत्सना इस रात्रि धरती पर *अन्न, जल और वनस्पतियों को औषधीय गुणों से सर्वाधिक सघनता से संतृप्त करती है।* इसी आधार पर शरद पूर्णिमा को अमृत वर्षा करने वाला कहा जाता है। 

*ऋषियों ने अनुसंधान से जाना कि व्यक्ति जो खाता है उससे उसका रक्त बनता है, रक्त से मांस और मांस से मज्जा तथा मज्जा से वीर्य बनता है वीर्य से ओज बनता है और ओज से मन बनता है। (ओज और मन स्थूल नहीं होते हैं) इसलिए कहा गया कि जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन। अतः मन ही व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन को नियंत्रित और संचालित करता है। उन्होंने यह भी जाना कि पूर्णिमा पर ही चंद्रमा मन को प्रभावित करता है। इससे ऋषियों ने जाना कि मन का कारक चंद्रमा है। शिव के माथे पर चंद्र इसी का द्योतक है।* 

*वस्तुत: शरद पूर्णिमा से हमारे परंपरागत संयुक्त पारिवारिक मूल्यों को सहज बढ़ावा मिलता है।*

*शरद पूर्णिमा की खीर*

*ऋषियों ने खोज की कि पृथ्वी पर ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो चंद्रमा की किरणों को सोख कर पुष्ट होती हैं। पेड़ पौधे वनस्पतियां दूध चावल और वे सभी चीजें जो जल प्रधान होती हैं चंद्र किरणों को अवशोषित करती हैं। इसलिए उन्होंने मनुष्यों के लिए खीर के रूप में दिव्य औषधि बनाई। दूध में लैक्टिक एसिड और चावल में स्टार्च होता है वहीं किसमिस केसर और चिरोंजी भी मुख्य कारक होते हैं इसलिए उन्होंने खीर को शरद पूर्णिमा पर 5.38pm से सुबह 3.58 तक खुला रखने का विधान बनाया ताकि चंद्र किरणों से सम्पर्क बना रहे यह भी कि आरोग्य युक्त इस खीर की औषधि को खाकर व्यक्ति को भी 30 मिनिट चंद्र किरणों के सम्पर्क में रहना चाहिए। इसलिए कोजागिरी पर्व मनाया जाता है जिसका अर्थ है कौन जाग रहा है।*

*रावण द्वारा चंद्र किरणों का प्रयोग*

*रावण शरद पूर्णिमा पर योग की वजरौली सिद्ध करके सोमचक्र, नक्षत्त्रीय चक्र और अश्विनी के त्रिकोण पर चंद्र किरणों को अपनी नाभी पर केन्द्रित करता था जिससे वह प्रचंड ऊर्जा का संग्रहण करने में सक्षम हुआ।*

*चंद्रमा की 16 कलाएं*

*ऋषियों ने सतत अध्ययन से चंद्रमा की 16 कलाएं ज्ञात कीं। उन्होंने जाना कि जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आ जाता है वह युति होती है अर्थात चंद्र मास प्रारंभ होता है (इस समय चंद्रमा दिखाई नहीं देता है) इसके 3.75 दिन बाद चंद्र एक महीन पतली सी रेखा जैसा दिखता है। इसके 7.5 दिन बाद पहली चतुर्थक (4 कलांए) होती हैं। अर्थात इस समय चंद्रमा 1.2 आधा दिखाई देता है। इसके 11.25 दिन बाद चंद्रमा 3/4 दिखता है। यदि प्रारंभ से चलें तो 14.5 दिन बाद चंद्रमा पूर्ण दिखाई देता है (पूर्णिमा/शुक्ल पक्ष) यह दूसरी चतुर्थक (8 कलांएं) हुईं। चंद की यह स्थिति उल्टे क्रम में दोहराई जाती है जो 29 दिनों में पूर्ण होती है (अमावस्या या कृष्ण पक्ष) यह चौथी चतुर्थक (16 कलाएं) हुईं। इस समय पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है*

*श्रीकृष्ण की 16 कलाएं और महारास* 

*शरद पूर्णिमा पर श्रीकृष्ण महारास का आयोजन करते थे सभी जनों के साथ चंद्र की धवल चांदनी में आरोग्य का लाभ और मन की चंचलता का निग्रह करवाते थे। चांदनी युक्त खीर के भोग के पश्चात विशेष योगिक नृत्य संपन्न होता था।*
*श्रीकृष्ण 16 कलाओं में पारंगत थे। जिसे उन्होंने अपने गुरु संदीपनी ऋषि से प्रयत्न पूर्वक ग्रहण किया था। वह महारास में लोगों के अनुभव में आतीं रहीं।*
*अग्नि ज्योतीर्हः शुक्ल षण्मासा उत्तरायणम्*
*तंत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रम्ह ब्रम्हविद जनः*
*1. अन्नमया - बुद्धि निश्चयात्मक*
*2. प्राणमया - जन्मांतर बोध*
*3. मनोमया - चित् वृत्ति निग्रह*
*4. विज्ञानमया - अहंकार रहित*
*5. आनंदमया - संकल्प विकल्प रहित*
*6. अतिशयनि - आकाश तत्व पर पूर्ण नियंत्रण, कहा हुआ प्रत्येक शब्द सत्य*
*7. विपारिनाभिमी - वायु तत्व पर पूर्ण नियंत्रण, स्पर्श मात्र से रोग-शोक शमन*
*8. संक्रमिनी - अग्नि तत्व पर पूर्ण नियंत्रण, दृष्टि मात्र से कल्याणार्थ शक्ति*
*9. प्रभवि - जल तत्व पर पूर्ण नियंत्रण, नदी समुद्र बाधा रहित*
*10. कुंबनी - पृथ्वी तत्व पर पूर्ण नियंत्रण, देह से दिव्य सुगंध निसृत, नींद, भूख प्यास पर नियंत्रण* 
*11. विकासिनी - जन्म मृत्यु पर नियंत्रण, इच्छानुसार*
*12. मर्यादिनी - समस्त भूतों पर पूर्ण नियंत्रण, एकरूपता, अनेकों स्थानों पर दृष्टिगोचर*
*13. सन्हाल्दिनी - समय पर पूर्ण नियंत्रण, इच्छानुसार देह वृद्धि*
*14. आल्हादिनी - सर्वव्यापी, पूर्णता, लोक कल्याण*
*15. परिपूर्ण - कारण का भी कारण, अव्यक्त अवस्था*
*16. स्वरूपवस्थित - इच्छानुसार दिव्यता का प्रकटीकरण, उत्तरायण के प्रकाश की तरह उज्जवल*

*शरद पूर्णिमा भारतीय संस्कृति रूपी भवन की नींव का एक मुख्य पत्थर है। आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध किया है कि शरद पूर्णिमा में 30 मिनट चांदनी में चंद्र किरणों के साथ सम्पर्क रहने से रक्त में न्युराॅन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं जिससे मस्तिष्क ऊर्जा और सकारात्मकता से भर जाता है। यह बात लाखों साल पहले ऋषियों ने समझ ली थी तदनुसार उन्होंने चंद्रमा का प्रभाव मन, माता, मानसिकता, मनोबल, मूल्य,मुद्रा, महत्वाकांक्षा, मूत्राशय, ह्रदय, पेट,आंतें, बायीं आंख इत्यादि पर कब कैसा और कितना पड़ता है यह जान लिया था।*

 *चंद्रमा पर दिन और रात 14-14 दिनों की होती है जबकि पृथ्वी पर 12-12 घन्टे के दिन रात होते हैं। यदि चंद्रमा नहीं होता तो पृथ्वी पर 6 घन्टें का दिन और 6 घन्टें की रात होती।*

॥शेष इति॥

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